दिवाली हिंदुओं के मुख्य त्यौहारों में से एक है। दिवाली भगवान श्री राम के अयोध्या वापसी की खुशी में मनाई जाती है। इस दिन लक्ष्मी जी की पूजा का विधान है।
माता लक्ष्मीजी के पूजन की सामग्री अपने सामर्थ्य के अनुसार होना चाहिए। इसमें लक्ष्मीजी को कुछ वस्तुएँ विशेष प्रिय हैं। उनका उपयोग करने से वे शीघ्र प्रसन्न होती हैं। इनका उपयोग अवश्य करना चाहिए। वस्त्र में इनका प्रिय वस्त्र लाल-गुलाबी या पीले रंग का रेशमी वस्त्र है।
माताजी को पुष्प में कमल व गुलाब प्रिय है। फल में श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े प्रिय हैं। सुगंध में केवड़ा, गुलाब, चंदन के इत्र का प्रयोग इनकी पूजा में अवश्य करें। अनाज में चावल तथा मिठाई में घर में बनी शुद्धता पूर्ण केसर की मिठाई या हलवा, शिरा का नैवेद्य उपयुक्त है।
प्रकाश के लिए गाय का घी, मूंगफली या तिल्ली का तेल इनको शीघ्र प्रसन्न करता है। अन्य सामग्री में गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्वपत्र, पंचामृत, गंगाजल, ऊन का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर ,भोजपत्र का पूजन में उपयोग करना चाहिए।
पूजा में आवश्यक साम्रगी (Important Things for Diwali Puja)
रोली | मोली | धूपबती |
कपूर | चन्दन | चावल |
यज्ञोपवीत -5 | रुई | गुलाल |
बुक्का | सिंदूर | पान -10 |
सुपारी -२० | पुष्पमाला | दूर्वा |
इत्र की सीसी -१ | इलायची छोटी | लवंग |
पेड़ा | ऋतुफल | दूध-दही |
धृत | चीनी | शहद |
पंच पल्लव | सर्वोषधि | गिरी का गोला -२ |
लक्ष्मी जी की मूर्ति | गणेश जी की मूर्ति | सिंहासन |
लक्ष्मी जी के वस्त्र | गणेशजी के वस्त्र | धान का लावा (खिल) |
कलश ताम्र अथवा मिट्टी | सफ़ेद कपडा आधा मीटर | लाल कपडा आधा मीटर |
गंगाजल |
महालक्ष्मी पूजा या दिवाली पूजा के लिए रोली, चावल, पान- सुपारी, लौंग, इलायची, धूप, कपूर, घी या तेल से भरे हुए दीपक, कलावा, नारियल, गंगाजल, गुड़, फल, फूल, मिठाई, दूर्वा, चंदन, घी, पंचामृत, मेवे, खील, बताशे, चौकी, कलश, फूलों की माला, शंख, लक्ष्मी व गणेश जी की मूर्ति, थाली, चांदी का सिक्का, 11 दिए आदि वस्तुएं पूजा के लिए एकत्र कर लेना चाहिए।
कैसे करें लक्ष्मी पूजा की तैयारी
- सबसे पहले चौकी पर गणेशजी एवं लक्ष्मी जी की मूर्तियां रखें उनका मुख पूर्व या पश्चिम दिशा में रहे।
- लक्ष्मीजी, गणेश जी के दाहिनी ओर रहें।
- पूजन कर्ता मूर्ती केे सामने की आकर बैठेे।
- कलश को लक्ष्मी जी के पास चावलों पर रखें।
- नारियल का लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें । (कलश वरूण का प्रतीक माना जाता है।)
- दो वडे दीपक रखें, एक घी का, दूसरा तेल का। एक दीपक चौकी के दांई और रखें व दूसरा मूर्तियों के चरणों में । एक दीपक गणेश जी के पास रखें।
- मूर्तीयों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उसपर लाल वस्त्र विछाएं।
दिवाली पर लक्ष्मी पूजन के समय एक चौकी पर मां लक्ष्मी और श्रीगणेश आदि प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं। इसके अतिरिक्त एक छोटी चौकी भी बनाई जाती है। इस चौकी को भी विधि-विधान से सजाना चाहिए। छोटी चौकी को कैसे सजाना चाहिए, जानिए-
- लक्ष्मी व गणेश व अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। फिर कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियां तीन लाइनों में बनाएं
- गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं। यह सोलह ढेरियां मातृका की प्रतीक है। नवग्रह व सोलह मातृका के बीच में स्वस्तिक का चिन्ह बनाएं। इसके बीच में सुपारी रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी रखें।
- लक्ष्मीजी की ओर श्री का चिन्ह बनाएं। गणेशजी की ओर त्रिशूल बनाएं। एक चावल की ढेरी लगाएं जो कि ब्रह्माजी की प्रतीक है। सबसे नीचे चावल की नौ ढेरियां बनाएं जो मातृक की प्रतीक है।
- सबसे ऊपर ऊँ का चिन्ह बनाएं। इन सबके साथ ही व्यापारियों को कलम, दवात, बहीखाते और सिक्कों की थैली भी रखना चाहिए।
- इस प्रकार मां लक्ष्मी की चौकी सजाने पूजा जल्दी सफल हो सकती है।
दिवाली पूजा विधि (Diwali Puja Vidhi)
स्कंद पुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या के दिन प्रात: काल स्नान आदि से निवृत्त होकर सभी देवताओं की पूजा करनी चाहिए। इस दिन संभव हो तो दिन में भोजन नहीं करना चाहिए।
घर में शाम के समय पूजा घर में लक्ष्मी और गणेश जी की नई मूर्तियों को एक चौकी पर स्वस्तिक बनाकर तथा चावल रखकर स्थापित करना चाहिए। मूर्तियों के सामने एक जल से भरा हुआ कलश रखना चाहिए। इसके बाद मूर्तियों के सामने बैठकर हाथ में जल लेकर शुद्धि मंत्र का उच्चारण करते हुए उसे मूर्ति पर, परिवार के सदस्यों पर और घर में छिड़कना चाहिए।
गुड़, फल, फूल, मिठाई, दूर्वा, चंदन, घी, पंचामृत, मेवे, खील, बताशे, चौकी, कलश, फूलों की माला आदि सामग्रियों का प्रयोग करते हुए पूरे विधि- विधान से लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। इनके साथ- साथ देवी सरस्वती, भगवान विष्णु, काली मां और कुबेर देव की भी विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। पूजा करते समय 11 छोटे दीप तथा एक बड़ा दीप जलाना चाहिए।
सभी छोटे दीप को घर के चौखट, खिड़कियों व छतों पर जलाकर रखना चाहिए तथा बड़े दीपक को रात भर जलता हुआ घर के पूजा स्थान पर रख देना चाहिए।
श्री महालक्ष्मी षोडशोपचार पूजा विधि – श्रीसूक्तम् – अर्थ सहित
यःशुचिः प्रयतोभूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् । सूक्तमं पंचदशर्च श्रीकामःसततं जपेत् । जो भी व्यक्ति प्रतिदिन श्रीसूक्तम् का 16 बार पाठ करता है उसे कभी धन की कमी नही होती ऐसा माँ महालक्ष्मी का वरदान है ।
1.आवाहन-इस मंत्र से आवाहन करे
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ।। (1)
अर्थ:- हे जातवेदा अग्निदेव आप मुझे सुवर्ण के समान पीतवर्ण वाली तथा किंचित हरितवर्ण वाली तथा हरिणी रूपधारिणी सुवर्नमिश्रित रजत की माला धारण करने वाली , चाँदी के समान धवल पुष्पों की माला धारण करने वाली , चंद्रमा के सद्रश प्रकाशमान तथा चंद्रमा की तरह संसार को प्रसन्न करने वाली या चंचला के सामान रूपवाली ये हिरण्मय ही जिसका सरीर है ऐसे गुणों से युक्त लक्ष्मी को मेरे लिए बुलाओ ।।
2.आसन -इस मंत्र से आसन समर्पण करे
ॐ तां म आ व ह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ।। (2)
अर्थ:- हे जातवेदा अग्निदेव आप उन जगत प्रसिद्ध लक्ष्मी जी को मेरे लिए बुलाओ जिनके आवाहन करने पर मै सुवर्ण, गौ, अश्व और पुत्र पौत्रदि को प्राप्त करूँ ।।
3.पाद्द – इस मंत्र से पाद्द समर्पण करे
ॐ अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद्प्रमोदिनीम् ।
श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ।। (3)
अर्थ:- जिस देवी के आगे और मध्य में रथ है अथवा जिसके सम्मुख घोड़े रथ से जुते हुए हैं, ऐसे रथ में बैठी हुई, हथिनियों की निनाद से संसार को प्रफुल्लित करने वाली देदीप्यमान एवं समस्त जनों को आश्रय देने वाली लक्ष्मी को मैं अपने सम्मुख बुलाता हूँ । देदीप्यमान तथा सबकी आश्रयदाता वह लक्ष्मी मेरे घर में सर्वदा निवास करे ।।
4.अर्ध्य – इस मंत्र से अर्ध्य समर्पण करे
ॐ कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मेस्थितां पदमवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम् ।। (4)
अर्थ:- जिसका स्वरूप वाणी और मन का विषय न होने के कारण अवर्णनीय है तथा जो मंद हास्ययुक्ता है, जो चारों ओर सुवर्ण से ओत प्रोत है एवं दया से आर्द्र ह्रदय वाली देदीप्यमान हैं । स्वयं पूर्णकाम होने के कारण भक्तो के नाना प्रकार के मनोरथों को पूर्ण करने वाली । कमल के ऊपर विराजमान, कमल के सदृश्य गृह मैं निवास करने वाली संसार प्रसिद्ध लक्ष्मी को मैं अपने पास बुलाता हूँ ।।
5.आचमन – इस मंत्र से आचमन करावे
ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्ती श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।
तां पद्मिनीमीं शरणं प्र पद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ।। (5)
अर्थ:- चंद्रमा के समान प्रकाश वाली प्राकृत कान्तिवाली, अपनी कीर्ति से देदीप्यमान, स्वर्ग लोक में इन्द्रादि देवों से पूजित अत्यंत दानशीला, कमल के मध्य रहने वाली, सभी की रक्षा करने वाली एवं अश्रयदाती, जगद्विख्यात उन लक्ष्मी को मैं प्राप्त करूँ इसलिए मैं तुम्हारा आश्रय लेता हूँ ।।
6.स्नान – इस मंत्र से स्नान करावे
ॐ आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्य अलक्ष्मीः ।। (6)
अर्थ:- हे सूर्य के समान कांति वाली देवी आपके तेजोमय प्रकाश से बिना पुष्प के फल देने वाला एक वृक्ष विशेष उत्पन्न हुआ जिसे विल्व वृक्ष कहते हैं । आपके हाथ से बिल्व का वृक्ष उत्पन्न हुआ, वह बिल्व वृक्ष का फल मेरे बाह्य और आभ्यन्तर की दरिद्रता को नष्ट करें ।।
7.वस्त्र – इस मंत्र से वस्त्र चढ़ावे
उपैतु मां देवसखः किर्तिश्च मणिना सह ।
प्रदुभुर्तॉऽस्मि रास्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिंमृद्धिम ददातु मे ।। (7)
अर्थ:- हे लक्ष्मी ! देवसखा अर्थात श्री महादेव के सखा (मित्र ) इन्द्र, कुबेरादि देवताओं की अग्नि मुझे प्राप्त हो अर्थात मैं अग्निदेव की उपासना करूँ । एवं मणि के साथ अर्थात चिंतामणि के साथ या कुबेर के मित्र मणिभद्र के साथ या रत्नों के साथ, कीर्ति कुबेर की कोषशाला या यश मुझे प्राप्त हो अर्थात धन और यश दोनों ही मुझे प्राप्त हों । मैं इस संसार में उत्पन्न हुआ हूँ, अतः हे लक्ष्मी आप यश और ऐश्वर्य मुझे प्रदान करें ।।
8.उपवस्त्र – इस मंत्र से उपवस्त्र(चोली) चढ़ावे
क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठमलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धि च सर्वां निर्गुद में गृहात् ।।(8)
अर्थ:- भूख एवं प्यास रूप मल को धारण करने वाली एवं लक्ष्मी की ज्येष्ठ भगिनी दरिद्रता मुझसे सदा ही दूर रहें, ऐसी प्रार्थना करता हूँ । हे लक्ष्मी आप मेरे घर में आने वाले ऐश्वर्य तथा धन को बाधित करने वाले सभी विघ्नों को दूर करें ।।
9.गंध – इस मंत्र से चन्दन चढ़ावे
गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप हवये श्रियम् ।। (9)
अर्थ:- सुगन्धित पुष्प के समर्पण करने से प्राप्त करने योग्य, किसी से भी न दबने योग्य, धन धान्य से सर्वदा पूर्ण कर गौ, अश्वादि पशुओं की समृद्धि देने वाली, समस्त प्राणियों की स्वामिनी तथा संसार प्रसिद्ध लक्ष्मी को मैं अपने घर परिवार में सादर बुलाता हूँ ।।
10.सोभाग्यद्रव्य – इस मंत्र से सोभाग्यद्रव्य(सिन्दूर आदि ) चढ़ावे
मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।
पशुनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ।। (10)
अर्थ:- हे लक्ष्मी ! मैं आपके प्रभाव से मानसिक इच्छा एवं संकल्प तथा वाणी की सत्यता, गौ आदि पशुओ के रूप (अर्थात दुग्ध -दधिआदि) एवं अन्नों के रूप (अर्थात भक्ष्य,भोज्य, चोष्य, चतुर्विध भोज्य पदार्थ) इन सभी पदार्थो को प्राप्त करूँ । सम्पति और यश मुझमें आश्रय ले अर्थात मैं लक्ष्मीवान एवं कीर्तिमान बनूँ ऐसी कृपा करें ।।
11.पुष्प – इस मंत्र से पुष्प चढ़ावे
कर्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम ।
श्रियम वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ।।(11)
अर्थ:- हे कर्दम आप अपनी माँ लक्ष्मी से हमारे लिए ही नहीं, अपितु हमारे सभी परिवार तथा हमारी समस्त प्रजा के कल्याण के लिए हमारे तरफ से प्रार्थना करें, कि माँ लक्ष्मी हम सभी के कल्याणार्थ हमारे घर आयें, हमारे यहाँ आप अपनी माँ के साथ रहें ताकि हम भी सुख पूर्वक निवास करें । हे कर्दम ! आपसे हमारी प्रार्थना है कि आप हमारे घर आयें, हमारे यहाँ निवास करें, क्योंकि आपके हमारे यहाँ आने से माँ लक्ष्मी को मेरे यहाँ आना ही पड़ेगा । हे कर्दम ! मेरे घर में लक्ष्मी निवास करें, केवल इतनी ही प्रार्थना नहीं है अपितु कमल की माला धारण करने वाली संपूर्ण संसार की माँ लक्ष्मी को मेरे घर में आप निवास कराओ ।।
12.धुप – इस मंत्र से धुपबती दिखावे
आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस् मे गृहे ।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ।।(12)
अर्थ:- जिस प्रकार कर्दम की संतति ‘ख्याति ‘से लक्ष्मी अवतरित हुई उसी प्रकार कल्पान्तर में भी समुन्द्र मंथन द्वारा चौदह रत्नों के साथ लक्ष्मी का भी आविर्भाव हुआ है । इसी अभिप्राय से कहा जा सकता है कि वरुण देवता स्निग्ध अर्थात मनोहर पदार्थो को उत्पन्न करें । (पदार्थो कि सुंदरता ही लक्ष्मी है । लक्ष्मी के आनंद, कर्दम ,चिक्लीत और श्रित – ये चार पुत्र हैं । इनमें ‘चिक्लीत’ से प्रार्थना की गई है कि हे चिक्लीत नामक लक्ष्मी पुत्र ! तुम मेरे गृह में निवास करो । केवल तुम ही नहीं अपितु दिव्यगुण युक्त सर्वाश्रयभूता अपनी माता लक्ष्मी को भी मेरे घर में निवास कराओ ।।
13.दीप – इस मंत्र से दीपक दिखावे
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंडगलां पदमालिनीम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आ वह ।। (13)
अर्थ:- हे अग्निदेव ! तुम मेरे घर में पुष्करिणी अर्थात दिग्गजों (हाथियों ) के सूंडाग्र से अभिषिच्यमाना (आर्द्र शरीर वाली) पुष्टि को देने वाली अथवा पुष्टिरूपा रक्त और पीतवर्णवाली, कमल कि माला धारण करने वाली संसार को प्रकाशित करने वाली प्रकाश स्वरुप लक्ष्मी को बुलाओ ।।
14.नैवेध – इस मंत्र से नैवेध समर्पण करे
आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आ वह ।। (14)
अर्थ:- हे अग्निदेव ! तुम मेरे घर में भक्तों पर सदा दयार्द्रर्चित अथवा समस्त भुवन जिसकी याचना करते हैं, दुस्टों को दंड देने वाली अथवा यष्टिवत् अवलंबनीया (सारांश यह है, कि ‘जिस प्रकार लकड़ी के बिना असमर्थ पुरुष चल नहीं सकता, उसी प्रकार लक्ष्मी के बिना संसार का कोई भी कार्य नहीं चल सकता), सुन्दर वर्ण वाली एवं सुवर्ण कि माला वाली सूर्यरूपा (अर्थात जिस प्रकार सूर्य अपने प्रकाश और वृष्टि द्वारा जगत का पालन -पोषण करता है उसी प्रकार लक्ष्मी ,ज्ञान और धन के द्वारा संसार का पालन -पोषण करती है) अतः प्रकाश स्वरूपा लक्ष्मी को हमारे लिए बुलाओ ।।
15.दक्षिणा – इस मंत्र से दक्षिणा ,आरती एवं पुष्पांजलि करे
तां म आवह जातवेदो लक्ष्मी मन पगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ।। (15)
अर्थ:- हे अग्निदेव ! तुम मेरे यहाँ उन जगद्विख्यात लक्ष्मी को जो मुझे छोड़कर अन्यत्र न जाने वाली हों, उन्हें बुलाओ । जिन लक्ष्मी के द्वारा मैं सुवर्ण, उत्तम ऐश्वर्य, गौ, दासी, घोड़े और पुत्र -पौत्रादि को प्राप्त करूँ अर्थात स्थिर लक्ष्मी को प्राप्त करूँ ।।
16.नमस्कार – इस मंत्र से नमस्कार करे
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् ।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ।। (16)
अर्थ:- जो मनुष्य लक्ष्मी कि कामना करता हो, वह पवित्र और सावधान होकर प्रतिदिन अग्नि में गौघृत का हवन और साथ ही श्रीसूक्त कि पंद्रह ऋचाओं का प्रतिदिन पाठ करें ।।
इसके पश्चात लक्ष्मी जी की आरती और चालीसा पाठ करना चाहिए
लक्ष्मी जी के मंत्र (Laxmi Mata Mantra in Hindi)
मां लक्ष्मी की पूजा के दौरान इस मंत्र के द्वारा उन्हें रक्तचन्दन समर्पण करना चाहिए-
रक्तचन्दनसम्मिश्रं पारिजातसमुद्भवम् |
मया दत्तं महालक्ष्मि चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ||
ॐ महालक्ष्म्यै नमः रक्तचन्दनं समर्पयामि |
मां लक्ष्मी की पूजा के दौरान इस मंत्र के द्वारा उन्हें दुर्वा समर्पण करना चाहिए-
क्षीरसागरसम्भते दूर्वां स्वीकुरू सर्वदा ||
ॐ महालक्ष्म्यै नमः दूर्वां समर्पयामि |
इस मंत्र के द्वारा मां लक्ष्मी को अक्षत समर्पण करना चाहिए-
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुंकुमाक्ताः सुशोभिताः |
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरि ||
ॐ महालक्ष्म्यै नमः | अक्षतान समर्पयामि ||
इस मंत्र के द्वारा मां लक्ष्मी को पुष्प माला समर्पण करना चाहिए-
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो |
ॐ मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि |
ॐ महालक्ष्म्यै नमः | पुष्पमालां समर्पयामि ||
इस मंत्र के द्वारा मां लक्ष्मी को आभूषण समर्पण करना चाहिए-
त्नकंकणवैदूर्यमुक्ताहाअरादिकानि च |
सुप्रसन्नेन मनसा दत्तानि स्वीकुरूष्व भोः || ॐ
क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् |
अभूतिमसमृद्धि च सर्वां निर्णुद मे गृहात् || ॐ महालक्ष्म्यै नमः | आभूषण समर्पयामि |
इस मंत्र के द्वारा माता लक्ष्मी को वस्त्र समर्पण करना चाहिए-
दिव्याम्बरं नूतनं हि क्षौमं त्वतिमनोहरम् | दीयमानं मया देवि गृहाण जगदम्बिके ||
ॐ उपैतु मां देवसुखः कीर्तिश्च मणिना सह | प्रादुर्भूतोस्मि राष्ट्रेस्मिन कीर्तिमृद्धि ददातु मे ||
इस मंत्र के द्वारा मां लक्ष्मी को स्नान हेतु घी अर्पित करना चाहिए-
ॐ घृतं घृतपावानः पिबत वसां वसापावानः पिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा |
दिशः प्रदिश आदिशो विदिश उद्धिशो दिग्भ्यः स्वाहा || ॐ महालक्ष्म्यै नमः घृतस्नानं समर्पयामि |
मां लक्ष्मी की पूजा में इस मंत्र के द्वारा उन्हें जल समर्पण करना चाहिए-
मन्दाकिन्याः समानीतैर्हेमाम्भोरूहवासितैः | स्नानं कुरूष्व देवेशि सलिलैश्च सुगन्धिभिः ||
ॐ महालक्ष्म्यै नमः स्नानं समर्पयामि |
इस मंत्र के द्वारा मां लक्ष्मी को आसन समर्पण करना चाहिए-
तप्तकाश्चनवर्णाभं मुक्तामणिविराजितम् | अमलं कमलं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम् ||
ॐ अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम् | श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ||
इस मंत्र के द्वारा मां लक्ष्मी का आवाहन करना चाहिए-
सर्वलोकस्य जननीं सर्वसौख्यप्रदायिनीम |
सर्वदेवमयीमीशां देवीमावाहयाम्यहम् ||
ॐ तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् | यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ||